A beautiful shloka

सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः।
अप्रियस्य च सत्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः॥

” हे राजन् ! सदैव प्रिय बोलने वाले लोग सर्वत्र सुलभ हैं, किन्तु सत्य और अप्रिय वचन ‘बोलनेवाले’ एवं ‘सुननेवाले’ दोनों ही तरह के लोग इस लोक में दुर्लभ हैं।”

O king ! It is easy to find people who speak pleasing and agreeable words but difficult to find those who speak or listen truth.